
Shiv tandav
एक बार की बात है कि महादेव की उपासना इंसान को इस मृत्यु रुपी संसार के काल चक्र से मुक्ति दिला देती है। Shiv Tandav स्तोत्र का पाठ महादेव का आशीर्वाद रुपी हस्त सदा भक्त रख देता है। भोलेनाथ का आशीर्वाद आजीवन संकट से बचाने के लिए कवच का काम करता है।
(शिवताण्डवस्तोत्रम्) शिव ताण्डव स्तोत्र परम शिवभक्त लंकापति रावण द्वारा गाया भगवान शिव का स्तोत्र है।
Lord Shiva
ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। शिव हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं।
Shiv
उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । (Shiv Tandav) शिव की पत्नी अर्द्धांगिनी (शक्ति) माता पार्वती और इनके पुत्र स्कन्द और गणेश हैं। उनके अनेक रूपों में उमा-महेश्वर, अर्द्धनारीश्वर, पशुपति, कृत्तिवासा, दक्षिणामूर्ति तथा योगीश्वर आदि अति प्रसिद्ध हैं।
Ravan and lord shiva
रावण और भगवान शिव – भगवान भोलेनाथ के अनेक भक्त हैं, जिनमें से रावण भी एक था। रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। नूरपूर की वादियों में रावण ने सालों तक भगवान शिव की आराधना की थी। नूरपूर में एक बड़ी ही रहस्यमय गुफा है। गुफा में सैकड़ों शिवलिंग हैं। वहां रावण कई वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भूखा—प्यासा रहा था। आज भी यह गुफा अपना वजूद बचाए हुए है। भले ही रावण का अंत बहुत बुरा हुआ, किन्तु शिव भक्तों में उसका नाम सर्वोपरी लिया जाता है। हमारे देश में एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर भगवान शिव से पहले रावण की पूजा जाती है।
benefits of shiv tandav stotram
कुबेर व रावण दोनों ऋषि विश्रवा की संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे। ऋषि विश्रवा ने सोने की लंका का राज्य कुबेर को दिया था लेकिन वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए। (Shiv Tandav)कुबेर के चले जाने के बाद इससे दशानन बहुत प्रसन्न हुआ। वह लंका पति अर्थात लंका का राजा बन गया राज्य मिल जाने के बाद वह अभिमानी और अहंकारी हो गया उसने साधुजनों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए। दशानन ने कुबेर की नगरी तथा उसके पुष्पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया था।
Shiv tandav katha
एक दिन पुष्पक विमान में सवार होकर शारवन की तरफ चल पड़ा। एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई। पुष्पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था तथा उसकी गति मन की गति से भी तेज थी, इसलिए जब पुष्पक विमान की गति मंद हो गर्इ तो दशानन को बडा आश्चर्य हुआ। तभी उसकी दृष्टि सामने खडे विशाल हिमालय पर्वत पर पडी। रावण ने अपना बल दिखाने के लिए कैलाश पर्वत ही उठा लिया था।
Shiv tandav path vidhi
हिन्दू धरम शास्त्रों के अनुसार सुबह जल्दी स्नान करके, भगवन शिव की पूजा करने के बाद Shiv Tandav स्तोत्र का पाठ करे। सर्वप्रथम शिवलिंग का कच्चे दूध और जल से अभिषेक करे, तत्पश्चात धुप, दीप, पुष्प और नैवैद्य अर्पित करे ,तत्पश्चात शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ करे।
Shiv tandav stotra in hindi
जब वह पूरे पर्वत को ही लंका ले जाने लगा तो उसका अहंकार तोड़ने के लिए महादेव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबाकर उसे स्थिर कर दिया। इससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और वह दर्द से चिल्लाने लगा – ‘शंकर शंकर’ – जिस शब्द का शाब्दिक अर्थ था शमा कीजिये प्रभु, और वह महादेव की स्तुति करने लगा। इस स्तुति को ही Shiv Tandav स्तोत्र (शिवताण्डवस्तोत्रम्) कहते हैं। इस स्तोत्र से प्रसन्न होकर ही शिव जी ने लंका पति को ‘रावण’ नाम दिया था।
Shiv tandav stotram meaning in hindi
महादेव यानी भगवान शंकर को खुश करने और उनकी कृपा पाने के लिए यह स्त्रोत अचूक है।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम् ॥1॥
जिन भगवान् शिव के विशाल सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, आपके गले मे बड़े बड़े सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे महादेव हमारा कल्याण करें।
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
जिन भगवान् शिव के विशाल सघन जटा में अतिवेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शीश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचंड महा ज्वालायें धधक धधक करते हुए उज्ज्वलित हो रही हैं, उन छोटे से चन्द्रमा के रूप पर मेरा मन का अनुराग प्रतिक्षण बढता रहे।
Shiv tandav stotram
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥4॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥5॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥6॥
नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥7॥
प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥8॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥9॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥10॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुह्रद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥11॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥12॥
॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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