
Pradosh Vrat Ki Mahima
प्रदोष व्रत एक साल के हर महीने में दो बार किया जाता है। Pradosh Vrat के दिन भगवान शिव और माँ पार्वती जी की पूजा की जाती है।
प्रदोष व्रत महीने में एक बार शुक्ल पक्ष और दूसरी बार कृष्ण पक्ष में आता है।
Pradosh vrat क्यों किया जाता है?
प्रदोष व्रत भगवान भोलेनाथ की कृपा को प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम और शुद्ध व्रत मन जाता है।
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को करने वाले हर व्यक्ति के जीवन से सारे संकटों का विनाश हो जाता है।
तथा उसके पूरे परिवार पर भगवान् शिव की कृपा हमेशा ही बनी रहती है।

Pradosh Vrat
Pradosham
हमारे हिंदू पंचांग अनुसार प्रदोष व्रत हर माह की त्रयोदशी तिथि के दिन होता है।
प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों की त्रयोदशी के दिन ही रखा जाता है।
Pradosh Vrat का तो वैसे ऐसा माहात्म्य है की यह यदि किसी भी वार के दिन आए वह शुभ ही होता है।
परन्तु कुछ विशेष तिहतियों या वारों के साथ आने पर यह और भी अधिक शुभ फलदायी हो जाता है।
सोमवार को आने वाले सोम प्रदोष और मंगलवार को आने वाले भौम प्रदोष तथा शनिवार को आने वाले शनि प्रदोष का बहुत ही अधिक महत्व मन जाता है।
Importance of pradosh mahtva
भगवन शिव का यह Pradosh Vrat अन्य दूसरे व्रतों से बहुत ही अधिक शुभ एवं महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है।
इस तिथि में भगवान शिव की पूजा करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है। तथा वह मृत्यु के बाद महा मोक्ष को प्राप्त करता है।

pradosh vrat katha
Method of pradosh Vrat
प्रदोष व्रत को करने के लिए उस व्रती को त्रयोदशी के दिन सुबह सूर्य उदय से पहले उठना होग।
अपने नित्यकर्मों से निवृत्त होकर वह भोले नाथ का स्मरण करेग। Pradosh Vrat के दिन में आहार नहीं लिया जाता है।
व्रती को पूरे दिन उपावस रखना होता है। तथा सूर्यास्त से पहले स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण करेगा।
अपने पूजा के स्थल को शुद्ध करेगा। तथा गाय के गोबर से लीपकर पूजा के मंडप को तैयार करेगा।
Pradosh vrat vidhi
व्रती मंडप में पांच रंगों का प्रयोग करते हुए रंगोली का निर्माण करेगा।
निर्माण करने के बाद व्रती उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठेगा।
तत्पश्चात व्रती भगवान शंकर का पूजन करेगा।
Pradosh Vrat के लिए व्रती पूजा के समय भगवान शिव के महा मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करेगा और भगवान् शिव को जल चढ़ायेग।
Pradosh vrat benefits
प्रदोष व्रत के लाभ
व्रती को प्रदोष व्रत करने से भगवान शंकर की अपार कृपा प्राप्त होती है।
प्रदोष व्रत को करने से जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं भक्त के जीवन में नहीं रह जाता है।
व्यक्ति को आर्थिक संकटों का समाधान करने के लिए प्रदोष व्रत करना बहुत ही अवश्य होता है।
Pradosh Vrat को करने से व्यक्ति के जीवन से हर प्रकार के रोग दोष दूर हो जाते हैं।
खासकर अविवाहित युवक युवतियों को इस महा प्रदोष व्रत अवश्य ही करना चाहिए।
जिसके प्रभाव से योग्य वर-वधू की प्राप्ति हो जाती है। हमारे प्रभु भगवान शिव शंकर ज्ञान और मोक्ष के दाता है।
अध्यात्म के जीवन पर चलने वाले या चाह रखने वाले ऐसे व्यक्ति को अवश्य ही प्रदोष व्रत करना चाहिए।

pradosh vrat 2019
Pradosh vrat udyapan
इस Pradosh Vrat को 11 या 26 त्रयोदशियों तक रखना चाहिए। उसके बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
व्रत का उद्यापन हमेशा त्रयोदशी तिथि पर ही किया जाता है। भक्त को उद्यापन से एक दिन पहले श्री गणेश महाराज जी का पूजन करना चाहिए।
भक्त को पहली रात में भगवान् का नाम गुणगान कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए। भक्त को सुबह जल्दी उठकर पूजा का मंडप बनाना चाहिए।
प्रदोष व्रत का उद्यापन
मंडप को वस्त्रों और रंगोली से भली भाँती सजाकर तैयार किया जाना चहिये।
और ॐ नमः शिवाय महा मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन करेंगे।
भक्त को हवन में आहूति हेतु खीर का प्रयोग करना चाहिए।
भक्त को हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती करनी चाहिए।
तथा शान्ति पाठ करना चहिये। इसके बाद भक्त को दो ब्रह्माणों को भोजन करना चाहिए।
तथा दान दक्षिणा करनी चहिये।
Pradosh vrat katha
स्कंद पुराण के अनुसार पुराने समय की बात है। एक विधवा ब्राह्मणी थी।
जो अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने के लिए जाती थी। और संध्या होते-होते घर वापस लौट आती थी।
रोज की तरह जब एक दिन वह भिक्षा लेकर घर लौट रही थी। तो उसे नदी के किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक दिखाई दिया।
वह बालक विदर्भ देश के राजकुमार धर्मगुप्त थे। शत्रुओं ने उनके पिता को मारकर उनका राज्य हड़प लिया।
धर्मगुप्त की माता की अकाल मृत्यु हुई थी। ब्राह्मणी ने जब उस बालक को देखा तो उसे अपना लिया।
Pradosh vrat katha in hindi
और बालक का पालन-पोषण करने लगी। ब्राह्मणी कुछ समय पश्चात दोनों बालकों को साथ लेकर देवयोग से देव मंदिर गई।
वहां पर उनकी भेंट महान ज्ञानी ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य के द्वारा ब्राह्मणी को पता चला की जो बालक उन्हें मिला है, वह विदर्भ देश के राजा के पुत्र धर्मगुप्त है।
राजा युद्ध में मारे गए तथा उनकी माता की अकाल मृत्यु हो गई थी।
तब ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की राय दी। ऋषि जी की आज्ञा से दोनों बालकों के द्वारा भी वह प्रदोष व्रत किया गाय।
प्रदोष व्रत कथा
एक बार जब दोनों बालक वन में घूम रहे थे। तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई।
ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया परन्तु राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से वार्तालाप करने लगे।
राजकुमार धर्मगुप्त और गंधर्व कन्या दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए।
तथा कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने हेतु बुलाया।
भगवान भोलेनाथ की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह धर्मगुप्त से कराया।
Pradosham benefits
कुछ समय पश्चात् राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना के सहयोग से विदर्भ देश पर अपना पुनः आधिपत्य प्राप्त कर लिया।
यह सब हुआ ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किया गए प्रदोष व्रत करने के कारण।
जो भी भक्त स्कंदपुराण के अनुसार प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर Pradosh Vrat कथा सुनता है। या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी भी दरिद्रता नहीं देखनी पडती।
प्रदोष व्रत तिथियां 2019 । Pradosh Vrat Dates 2019 । Pradosh Vrat Calendar 2019
दिनाँक | दिन | हिन्दु चांद्र मास |
---|---|---|
3 जनवरी | बृहस्पतिवार | पौष कृष्ण पक्ष |
19 जनवरी | शनिवार | पौष शुक्ल पक्ष |
2 फरवरी | शनिवार | माघ कृष्ण पक्ष |
17 फरवरी | रविवार | माघ शुक्ल पक्ष |
3 मार्च | रविवार | फाल्गुन कृष्ण पक्ष |
18 मार्च | सोमवार | फाल्गुन शुक्ल पक्ष |
2 अप्रैल | मंगलवार | चैत्र कृष्ण पक्ष |
17 अप्रैल | बुधवार | चैत्र शुक्ल पक्ष |
2 मई | बृहस्पतिवार | वैशाख कृष्ण पक्ष |
16 मई | बृहस्पतिवार | वैशाख शुक्ल पक्ष |
31 मई | शुक्रवार | ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष |
14 जून | शुक्रवार | ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष |
30 जून | रविवार | आषाढ़ कृष्ण पक्ष |
14 जुलाई | रविवार | आषाढ़ शुक्ल पक्ष |
29 जुलाई | सोमवार | श्रावण कृष्ण पक्ष |
12 अगस्त | सोमवार | श्रावण शुक्ल पक्ष |
28 अगस्त | बुधवार | भाद्रपद कृष्ण पक्ष |
11 सितंबर | बुधवार | भाद्रपद शुक्ल पक्ष |
26 सितंबर | बृहस्पतिवार | आश्विन कृष्ण पक्ष |
11 अक्तूबर | शुक्रवार | आश्विन शुक्ल पक्ष |
25 अक्टूबर | शुक्रवार | कार्तिक कृष्ण पक्ष |
9 नवंबर | शनिवार | कार्तिक शुक्ल पक्ष |
24 नवम्बर | रविवार | मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष |
9 दिसंबर | सोमवार | मार्गशीर्ष शुक्ल |
23 दिसंबर | सोमवार | पौष कृष्ण पक्ष |
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