
Natraj Kon The?
भगवान शिव को नटराज क्यों कहा जाता है?
Natraj – कोई निर्माण नहीं होता, कोई माया नहीं होती, कोई परतेशक सत्य नहीं होता, एहम नहीं होता तो लिव-शिव का स्तंम्भ ही शेष रह जाता है। यह तभी सम्भव है जब मानवीय कल्पना को कोई भय न रहे। भय का आभाव मन को सुख से भर देता है यह आंनद है यह लिंग है शिव का उतित अंग । यह सव्यम-भू है, सव्यम निर्मित, सव्यम सम्पूर्ण क्योंकि यह किसी बाहरी उत्तेजना से उच्चारित नहीं होता वह ज्ञान प्राप्ति की स्थिति में ही संभव है लेकिन यह ज्ञान किसके लिए।
मनुष्य ही अकेला प्राणी है जो दुसरो के भय को महसूस कर सकता है दूसरो के मनोभाव को समझ सकता है। Nataraj शिवलिंग इसलिए अकेला खड़ा नहीं होता यह देवी की योनिनी में शक्ति योनिनी द्वारा घिरा खड़ा होता है। देवी वह मंदिर है है जिसमे शिवलिंग स्थापित है। देवी अपनी चारो और की दुनिया का एक मंदिर है| वह शिवलिंग के ऊपर टंगा जल पात्र है जिसमे से पानी एक-एक बूँद करके इसलिए टपक रहा है की वे अपनी आँखे बंद न करे बल्कि उन्हें खोल कर दुनिया को देखते रहे।
Nataraja Statue
शक्ति इस प्रकार यह सुनिश्चित करती है कि वे जीव पर दृष्टि डाले उस मानवता को देखे को अहम, माया और ब्रमांड के भय से सिकुड़ गई है। अन्य सब देवियो की भार्या उनके साथ होती है विष्णु के साथ लक्ष्मी, राम के साथ सीता, कृष्ण के साथ राधा परन्तु शिव के आलावा किसी और के बच्चे नहीं दिखाए जाते।
शक्ति अर्थात्त प्रकृति, प्रकृति से हर प्राणी भय खता है इसलिए वे भोजन के लिए शिकार करते है और सवयं शिकारी से भय खाते है। गणेश के माध्यम से यह शक्ति शिव द्वारा आभाव का यह भय दूर करने का अवसर देती है। ये दोनों भय दूर हो जाने के बाद मानवता अपने सबसे बड़े भय अर्थहीन तथा सव्यम की वयरतथा का सामना करने का अवसर पाती है। वह अहम की प्रभाविवता पर अंकुश लगाकर आत्मा की उपलब्धि कर सकता है। इस विनिर्माण को सहज बनाने के लिए ही शिव प्रथम शिक्षक आदिनाथ हो जाते है। आदिनाथ दो रूपो में संसार को शिक्षा देते है दक्षिण मूर्ति के रूप में या Natraj के रूप में।
नटराज का रहस्य
Natraj Dance
आज जिससे भी नृत्य से प्यार है वो अपना नृत्य Natraj की मूर्ति को प्रणाम करके ही शुरू करता है और हर नृत्यशाला में Natraj की मूर्ति को पूजा जाता है। नटराज जिन्हे हम नृत्य का स्वामी भी कहते है और जो भगवान शिव का ही एक रूप है। भगवन शिव के तांडव के 2 स्वरूप है। आज तक हमें उनके रौद्र तांडव के बारे में ही पता था लेकिन उनका दूसरा तांडव स्वरूप भी है आंनद प्रदान करने वाला आंनद तांडव जिससे हम “Natraj” कहते है।
Nataraja Images
Natraj Ka Rahasya
Natraj को अक्सर मूर्ति के माध्यम से चित्रित किया जाता है। उनकी मुद्रा, कलाकृति को कई हिन्दू ग्रंथो में वर्णित किया गया है। Natraj की मूर्ति को काष्ठ से बनाया जाता है लेकिन कई जगहों पर ये पत्थर से बनी पायी गई है। Natraj को कॉस्मिक डांस (Cosmic Dance) भी कहा जाता है। कॉस्मिक यानि ब्रमांडीय ऊर्जा, क्योंकि उनका नृत्य सर्जन और विनाश क्या है ये दर्शाता है। कोई नृत्य नहीं कोई उत्तेजना नहीं शिव ही खुद में पारब्रम्ह है।
क्या है भगवान शिव के नटराज रूप की कथा
Nataraja God
एक बार भगवन शिव और देवी काली ने यह देखने का फैसला किया की कौन नृत्य और अभिव्यक्ति में सर्वश्रेष्ट है और इस प्रतियोगिता के न्यायधीष थे भगवान विष्णु। Natraj Dance भगवान शिव का नृत्य प्राकृतिक और सरलता उनकी अभिव्यक्ति उनके अंधरुन के साथ भरती है और सभी देवताओ और ऋषियों को मन्त्रमुक्त करती है जो इससे देख रहे थे। देवी काली ने भी उतनी ही सुंदरता के साथ अपने हर मुद्रा और अभिव्यक्ति दिए।
हम सब भगवान विष्णु की लीलाओ से परिचित है। हमें लगता है की सिर्फ भगवान विष्णु ही लीलाये रचते है पर नहीं भगवान शिव भी लीलाये रचते है। भगवान शिव ने अपने पाँव को कुमकुम में डूबा कर माँ काली के माथे पर लगा दिया। माँ काली ये देखकर आस्चर्यचकित रह गई क्योकि शिव उनके पति थे वह ऐसा उनके साथ साथ नहीं कर सकती थी। माँ काली भगवान शिव की इस लीला को समझ गई और मुस्कुराकर अपना नृत्य बंद कर दिया। तब भगवान विष्णु ने शिव को “Natraj” घोषित किया।
जानिए क्या है नटराज मुद्रा के पीछे के तत्व का ज्ञान
Natraj की यह मुद्रा अभय मुद्रा के नाम से जानी जाती है। शिवा का दाहिना पैर अपस्पार राक्षस पर है जो गलत ज्ञान का प्रतीक है। Natraj के चारो ओर अग्नि का चक्र है जो उनके पैरो पर शुरू होता है और वही पर खत्म। शिव के एक हाथ में डमरू है जो सर्जन (Creation) का प्रतीक है और दूसरे हाथ में अग्नि है जो विनाश को दर्शाता है।शिव ही निर्माता है और शिव ही विनाशकर्ता है|
Natraj Png
नटराज का बाया हाथ उनके बाये पैर को इंगित करता है। पैर उठाने के बाद शरीर असंतुलित होता है लेकिन शिव स्थिर है। उठाया हुआ पैर मोक्ष को दर्शाता है और बाया हाथ उस पैर की और इशारा कर मोक्ष के मार्ग पर चलने का सुझाव देता है। भारतीय पौराणिक ग्रंथो के अनुसार शरीर का बाया हिस्सा भौतिक संसार से जुड़ा हुआ है क्योंकि शरीर में दिल बायीं और होता है और दिल की धड़कने एक विशेष गति से धड़कती है।
इसी तरह भौतिक संसार में, समुन्द्र में, ऋतुो में निश्चित ताल और गति से बदल होता है। इस शरीर की दाहिनी बाजू आध्यात्मिक सत्य से जुडी हुई है। बाया हिस्सा प्रकृति हमेशा बदल होने वाले निसर्ग का प्रतीक है। दाहिना हिस्सा पुरुष है स्थिर और स्थित रहने की मानवी ताकत। इसलिए शिवा पार्वती के अर्धनारीश्वर रूप के चित्र और मूर्तियों में शिव दाहिनी और पारवती बाहिनी ओर होती है। इस शरीर को इस संसार को दोनों बाजुओ की, दोनों हिस्सों की, बायीं और दायी, प्रकृति और पुरष की आवश्यकता होती है। ब्रमांडीयन नृत्य का रूप इस प्रकार प्राचीन पौराणिक कथाएँ धार्मिक कला और आधुनिक भौतिकता को जोड़ता है।