
Meera Krishna se prem nahi karti thi
ये तो सत्य है, Meera Bai कृष्णा से प्रेम नहीं करती थी बल्कि मीरा krishna bhajan की दीवानी थी । आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यू बोला जा रहा है। ऐसा इसिलए की प्रेम तो दो लोगो के बीच होता है।
परन्तु यहाँ तो दो कोई है हिं नहीं।
मीरा प्रेम के उस महा अवस्था में पहुँच चुकी थी जहाँ द्वैत की अवस्था नहीं रहती। जहाँ केवल एक ही है।
मीरा और कृष्णा दोनों ही एक हो चुके थे। मीरा कृष्णा ही बन चुकी थी। प्रेम की उस महान अवस्था जहाँ आप न तो भक्त को जान सकते हैं न ही भगवान् को।
यही वह अवस्था है। इसिलए यहाँ यह सिद्ध करके बतया गया की मीरा को प्रेम नहीं था। वह तो krishna bhajan सुनती थी
Who is Meera Bai?
श्री कृष्ण भक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक और हिंदी की महान कवयित्री Meera Bai का जन्म संवत् १५७३ में जोधपुर में चोकड़ी नामक गाँव में
हुआ। मीरा बाई का विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज जी के साथ हुआ।
एक बार की बात है जब मीरा तीन साल की थी तो एक महात्मा संत उनके घर में पधारे। उन महात्मा ने उनके पिता राणा रतन सिंह को एक श्री कृष्णा की मूर्ति मूर्ति भेंट की।
अब उनके पिता यह सोचने लगे की शायद अगर कृष्णा की यह मूर्ति मीरा को दूँ और उसे पसंद ना आये तो। परन्तु कौन जाने जब भगवान् ही
होने भक्त के पास जाना चाहते हों तो।
किस की क्या मजाल उसे रोके या न अपना पाए। Meera Bai को जैसे ही वह मूर्ति उनके पिता ने दी उन्हें वह मूर्ति बहुत ही पसंद आई। और इतनी पसंद
आई की वह मूर्ति उनके दिल में बस गई।
Meera bai in hindi
जैसे-जैसे समय बीतने लगा उसके साथ Meera Bai को श्री कृष्ण की मूर्ति से इतना ज्यादा लगाव हो गया। उठते बेठते सोते खाते हमेशा वह श्री कृष्णा
की मूर्ति को प्राणों की तरह सदा अपने साथ रखने लगी मीरा के लिए अब कृष्णा ही उनकी आत्मा थी।
एक बार की बात है, जब उन्हें श्री कृष्णा की मूर्ति ढूढ़ने से भी नहीं मिल रही थी। तो वह श्री कृष्ण की मूर्ति को ढूढ़ते-ढूढ़ते इतनी परेशान और
बेचैन हो गई की उन्होंने खाना पीना सब छोर दिया।
प्रेम का इतना महाकर्षण मीरा बाई में हो गया की वह बेसुध हो पड़े रही। न मीरा को भोजन का ही भान रहा न ही अपने इस देह जो बहुत ही अमूल्य है उसका।
जब प्रेम का महाकर्षण प्रभु प्रेम में होता है तो। भगवान् भी रह नहीं पाते और दौड़े दौड़े आ जाते हैं।
Meera krishna
यही हुआ भी श्री कृष्णा की मूर्ति अपने आप ही उनके सम्मुख प्रकट हो गई। जिससे Meera Bai की चेतना वापस आई। मीरा जो बेसुध हो पागलों की
तरह यहाँ से वहां रोती बिलखती श्री कृषि श्री कृष्णा बोलते हुए भटक रही थी।
अब श्री कृष्ण के मिल जाने पर शांत और खुशी के मारे प्रेमाश्रुओं से उन्हें स्नेह करने लगी।
What happened to Meera Bai?
Meera Bai बचपन से ही कृष्ण भक्ति में इतनी तल्लीन हो गई की उन्हें अपना पति ही समझने लगी। एक बार की बात है, जब महल के पास से
एक बारात गुजर रही थी तो मीरा ने उत्सुकतावस अपनी माँ से पूछा।
माँ मेरे पति कौन हैं? माँ ने मजाकिया, लहजे में मीरा से बोला दिया की अरे तेरे पति तो खुद श्री कृष्णा ही हैं। जिनके साथ आप हमेशा रहती हो
और माँ ने व्यंग करते हुए श्री कृष्ण जी की मूर्ति दिखाई और बोली ये तेरे पति हैं।
भले ही मजाक में माँ ने तो बोला, परन्तु मीरा बाई ने उस बात को इतनी गहराई से लिया की उन्हें अपना पति समझ कर ही प्रेम करने लगी। और
श्री कृष्णा की भक्ति में इतनी तल्लीन हो गई की आज उन्हें राधा जी के साथ श्री कृष्णा दीवानी के रूप में हर कोई जानता है।
Meera Bai की माँ कृष्ण भक्ति में उनका समर्थन करती थी। परन्तु मीरा के भाग्य में माँ का साथ ज्यादा समय के लिए नहीं था। मीरा छोटी थी तो इनकी माँ का देहांत हो गया।
Meera
मीरा बाई का विवाह उनके न चाहते हुए भी मेवाड़ चित्तोड़ के महाराजा राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र के साथ हुआ। मीरा अब एक शक्तिशाली राज्य
की महारानी थी। परन्तु मेरा को राजसी ठाठ-बाठ में कोई रूचि नहीं थी।
लेकिन मीरा अपने पति की हर आज्ञा का पालन करती थी और शाम होते ही श्री कृष्ण की भक्ति में लग जाती थी। मीरा के ह्रदय में तो केवल श्री
कृष्णा ही थे। विवाह के थोड़े ही दिन के बाद मीरा बाई के पति का स्वर्गवास हो गया।
Krishna ki prem diwani meera
Meera Bai को जब अपने पति के साथ सती होने के लिए बोला तो मीरा ने यह कहते हुए मन कर दिया की मेरे पति केवल श्री कृष्णा ही हैं। पुराने
समय में ये एक कुप्रथा थी।
जहाँ पति के मरने के बाद पत्नी को भी उसकी जलती हुई चिता में बिठा कर जान देनी होती थी। पति के परलोकवास के बाद मीरा की भक्ति दिन
पर प्रति दिन अपनी प्रगाड़ता को छूने लगी।
How did Meera dance for Krishna?
मीरा मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्ण भक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे बेसुध हो नाचती रहती थी। कृष्ण की पागल मीरा इतनी
पागल हो गई की उसे कृष्णा के आलावा कुछ सुहाता ही नहीं था।
उसका यह नाचना गाना उसके ससुराल वालों को पसंद ही नहीं आता था। Meera Bai की अध्यात्मिक दिनचर्या अब और बढ़ने लगी जो अब मीरा
के ससुराल को अखरने लगी ससुराल वालों ने तर्क भी किया था।
मीरा अब मेवाड़ की महारानी है और उन्हें राजसी ठाठ वाठ के साथ संज संवर कर ही रहना चाहिए तथा राजवंश कुल की मर्यादा का ध्यान भी रखना चाहिए
Meerabai story in hindi
मीरा के ससुराल वालों से रिश्ते और भी खराब हो गए जब मीरा ने उनकी कुल देवी दुर्गा माँ की पूजा करने से मना कर दिया। मीरा कहती थी मेरे
तो सिर्फ गिरधर गोपाल हैं और किसी भगवान् की पूजा में मेरा मन लगता ही नहीं।
और जल्द ही मीरा की श्री कृष्ण भक्ति की चर्चा आस पास के क्षेत्र में होने लगी। उनके ससुर राणा सांगा का भी मुगलों के साथ युद्ध में देहांत हो गया.
और राणा विक्रमादित्य को चित्तोड़ गढ़ का महाराणा बना दिया गया। राणा विक्रम ने मीरा बाई को मारने के कई असफल प्रयास भी किये।
Did Krishna love Meera?
एक बार की बात है जब जहर का प्याला मीरा बाई को मारने के लिए भेजा गया। मीरा ने अपने भगवान् श्री कृष्ण को जहर के प्याले का प्रसाद
भोग लगाया. जैसे वह हर एक चीज का भोग लगाती थी.
तत्पश्चात मीरा ने भगवान् का प्रसाद स्वरुप ग्रहण कर लिया। परन्तु वह जहर का प्याला अमृत में बदल गया। जब राणा विक्रम ने काँटों की
सेज का बिस्तर मीरा को भेजा परन्तु काटों का बिस्तर भी फूलों के बिस्तर में बदल गया।
भगवान् श्री कृष्णा स्वयं उनकी रक्षा करते थे मीरा बाई को कई बार भगवान् ने स्वयं प्रकट हो कर दर्शन भी दिए थे। उनके घर वालों के इस प्रकार
के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृंदावन चली गईं।
मीरा बाई जहाँ जाती थीं वहाँ श्री क्रृष्ण का रंग हर किसी में इतना चढ़ जाता की सब बेसुध हो मीरा के साथ नाचते गाते रहते।
Meera ke pad
प्रेम का महाकर्षण हर जगह फैलने लगा। लोग Meera Bai को देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। इसी दौरान उन्होंने तुलसीदास को पत्र लिखा था जो इस प्रकार है-
स्वस्ति श्री तुलसी कुलभूषण दूषन- हरन गोसाई।
बारहिं बार प्रनाम करहूँ अब हरहूँ सोक- समुदाई।।
घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई।
साधु- सग अरु भजन करत माहिं देत कलेस महाई।।
मेरे माता- पिता के समहौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई।
हमको कहा उचित करिबो है, सो लिखिए समझाई।।
और मीराबाई के पत्र का जबाव तुलसी दास ने भी इसी प्रकार दिया –
जाके प्रिय न राम बैदेही।
सो नर तजिए कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेहा।।
नाते सबै राम के मनियत सुह्मद सुसंख्य जहाँ लौ।
अंजन कहा आँखि जो फूटे, बहुतक कहो कहां लौ।।
(मीरा ने पत्र में तुलसीदास जी को लिखा मेरे साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है। और में श्री कृष्णा को नहीं छोर सकती। घनश्याम मेरे रोम-रोम
में बसे हैं। तब तुलसी दस जी ने उन्हें उत्तर दिया की वह से निकल जाओ और जो भी आपकी भक्ति में बाधा बने उसे छोड़ दो।)
Meera ki bhakti bhavna
अब Meera Bai संत हो चुकी थीं और संत मीरा बाई की अध्यात्मिक रूचि और उनका कृष्ण के प्रति अघाद्य प्रेम और मीरा के साथ हुई चमत्कारी
घटना अकबर के कानों तक भी पहुंची।
अब अकबर की भी मीरा से मिलने की बहुत इच्छा हुई। जैसा की हम सभी जानते हैं अकबर भी दुसरे धर्मों को जानने और समझने में बहुत रूचि
रखता था।
परन्तु Meera Bai से मिलने में एक अड़चन थो जो थी मीरा का राजनैतिक परिवार और अकबर में राजनैतिक दुश्मनी थी।
अकबर नहीं चाहता था की मीरा से मिलना किसी युद्ध का कारण बने। इसिलए अकबर मीरा से मिलने के लिए एक भिखारी का रूप रखकर गए।
अकबर संत मीरा के भक्ति और उनके मंत्र मुग्ध करने वाले कृष्ण भजनों से इतने प्रभावित हुए की जाते समय मीरा बाई के चरणों में अकबर ने
वेशकीमती हीरे का हार भेट किया।
मीराबाई की भक्ति
परन्तु यह बात मेवाड़ के राजसभा से छुपी न रही। राणा कुम्भा ने मीरा को आदेश दिया की वह किसी नदी में कूद जाएँ और अपने प्राण त्याग दें।
अपने पति की आज्ञा उन्होंने शिरोधार्य किया।
जैसे ही वह नदी में जाने लगी श्रो कृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने मीरा को वृन्दावन जाने का आदेश दिया वृन्दावन मेरी तपो भूमि है वहां जाकर
आप शांति पूर्वक हमारा अनुसरण कर सकेंगी।
समय जैसे ही बिता राणा कुम्भा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने संत मीरा बाई को वापस चित्तोड़ चलने को कहा।
परन्तु मीरा ने यह कहते हुए मन कर दिया की अब श्री कृष्णा भगवान् ही उनके सबकुछ हैं।
Mirabai
मीरा बाई की श्री कृष्णा के प्रति परम निस्वार्थ और भक्ति को देख कर भाव से भर गए। संत Meera Bai को राणा ने वादा किया की वो उनके सत्संग
और भजन कीर्तन में कोई व्यवधान नहीं डालेंगे।
दोनों घुटनों पर बेठ कर वापस आने की प्रार्थना करने लगे। इस बार संत मीरा बाई उन्हें मना न कर सकी और राणा भोज के साथ मेवाड़ चित्तोढ़
वापस आ गई।
(लेकिन राणा भोज की म्रत्यु के बाद परिस्थितिया बदल गई और उन्हें ससुराल में प्रताड़ित किया जाने लगा)|
कृष्ण की दिवानी मीरा की भक्ति में माधुर्य रास काफी हद तक पाया जाता है।
उनकी भक्ति उनका प्रेम श्री कृष्णा के प्रति बहुत ही ज्यादा था जो वह अपने कृष्ण इष्टदेव की भावना प्रियतम या पति के रुप में करती।
उनके प्रेम ने उन्हें यह समझा दिया की इस संसार में कृष्ण के अलावा और कोई पुरुष है ही नहीं।
संत मीरा बाई की मृत्यु कैसे हुई थी?
वृन्दावन में जीवा गोसाईं वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख थे। एक बार जब संत Meera Bai जीवा गोसाईं के दर्शन करना चाहती थी।
लेकिन जीवा गोसाईं जी ने ये कह कर मीरा को मना कर दिया की वो किसी स्त्री की परछाई भी अपने ऊपर नहीं पड़ने दे सकते.
मुझे तो आज ही पता चला है की इस पूरे वृन्दावन में श्री कृष्ण के अलावा कोई और भी पुरुष है मेरे लिए तो हर कोई इस वृन्दावन में स्त्री स्वरुप है ऐसा मीरा ने उन्हें कहा।
Meera ka antim samay
मीरा कहती है मुझे तो नंदलाल के अलावा कोई और पुरुष नज़र ही नहीं आता जैसे ही गुसाईं जी ने यह सुना वह दौड़े दौड़े मीरा से मिलने आ पहुँचे.
संत मीरा बाई ने अपना आखरी समय द्वारका में बिताया।
एक बार जब मीरा बाई द्वारका स्थित द्वारकाधीश मंदिर में भजन कीर्तन कर रही थी तो उस समय मीरा भावनात्मक रूप से इतना कृष्ण से
जुड़ गई की नंदलाल से प्रार्थना करने लगी की उसे आप अपने में समा लो|
संत मीरा बाई मंदिर के गर्भ गृह में गई और कपाट बंद किये। और जैसे ही लोगों ने कपाट खोले मीरा वहां नहीं थी।
Meera Bai द्वारकाधीश मंदिर की कृष्णा मूर्ति में समा गई और उन्ही में लीन हो गयीं