
kedarnath temple story
श्री केदारनाथ जी बारह ज्योतिलिंगो मे से एक है। इसको केदारेश्वर भी कहा जाता है।केदार नामक पहाड़ पर स्थित है। सतयुग मे उपमन्यु ने यहाँ भगवान शंकर की आराधना की थी। द्वापर मे पांडवो ने यहाँ तपस्या की थी।यहाँ केदारनाथ क्षेत्र अनादि है।इस चोटी की पश्चिम दिशा मे मन्दाकिनी नदी इस मंदिर के पास बहती है।यह मंदिर समुद्र तट से लगभग 3585 मीटर ऊंचाई पर स्थित है।यहाँ बर्फ युक्त पर्वत अतिसुन्दर दिखाई पड़ते है। यह हिन्दू हेतु एक पवित्र तीर्थ स्थल है।
kedarnath history
द्वादश ज्योतिलिंगो मे से पांचवा ज्योतिलिंग है।पुराणों के अनुसार शिव जी पांडवो से बहुत क्रोधित थे। उन्होंने अपने ही कुल के लोगो का कुरुक्षेत्र मे संहार किया था। पांडवो को यह ज्ञात होते ही वो लोग शिवजी से आशीर्वाद लेने तथा पापमुक्त हेतु मिलने गए। शिव उनसे मिलना नहीं चाहते थे। वे शिव का पीछा करने लगे।शिव जी भेष बदलकर हिमालय पलायन कर गए थे। भीम ने उनको पहचान लिया और उनको पकड़ने दौड़े।भगवान शिव उसी स्थान पर जमीन मे डसने लगे परतु भीम ने उनका कूबड़ पकड़ लिया।इस प्रकार से शिव नहीं छुड़ा पाए।वह उसी स्थान पर रह गया।जो वर्तमान का ज्योतिलिंग बना।उनकी भक्ति देखकर शिव जी प्रसन्न हुए।उनको पाप से मुक्ति दिलवाई। वही पर पूजा अर्चना करने का आदेश दिया।इस प्रकार केदारनाथ ज्योंतिलिंगा की उत्पत्ति हुई।
kedarnath temple history in hindi
जो भी व्यक्ति भक्ति भाव से शिव का पूजन करता है।उसके लिए उसके लिए सपने मे भी दुःख दुर्लभ है।जो भगवान शिव का प्रिय भक्त शिवलिंग पर शिव के निकट शिव के रूप से अंकित कढ़ा चढ़ाता है।वह भगवत दर्शन कर समस्त पापो से मुक्त हो जाता है।केदार तीर्थ पर पहुंचकर शिव की पूजा कर वहां का जल पीकर मनुष्य का फिर जन्म नहीं होता।
kedarnath temple story and history
मन्दाकिनी के घाट पर पहाड़ी सहीं पर बना हुआ मंदिर मुकुट जैसा प्रतीत होता है। शिवजी का शिवलिंग एक टीले जैसा है।भीतर अंधकार है।भीतर अंधकार है दीपक से इसके दर्शन होते है। दर्शनार्थी दीपको मे घी डालते है।शिवलिंग के सम्मुख जल-पुष्प आदि चढ़ाये जाते है। वही दूसरी और भगवान के ऊपर घी लगाया जाता है।वहा मूर्ति चार हाथ लम्बी तथा डेढ़ हाथ लम्बी मोटी है। इस प्रकार का निर्माण पांडवो ने करवाया था। इसकी ऊंचाई लगभग फ़ीट 80 है। जो एक विशाल चबूतरे पर स्थितहै।
kedarnath in hindi
इस पर भूरे रंग के पत्थरो का प्रयोग किया गया है। सबसे कोतुहल की बात तो यह है|।प्राचीन काल मे ऐसे यांत्रिक वाहनों के आभाव मे ऐसे दुर्गम स्थल पर कैसे पत्थरो का निर्माण कराया । यह भव्य मंदिर पांडवो की शिव भक्ति उनकी इच्छा-शक्ति उनके बाहुबल का जीता जागता उदहारण है। इसमें उत्तम प्रकार की कारीगरी इस्तेमाल की गयी है। मंदिर मे स्तभों के सहारे लकड़ी के स्तंभ है। जिसके ऊपर ताम्बा मडा गया है।मंदिर का शिखर भी ताम्बे का है।उस पर सोने की पोलिश की गयी है| इस प्रकार से मंदिर को देखकर असीम आनंद की अनुभूति प्राप्त करते है।
उन्हें ऐसा लगता है जैसे- वो किसी देवभूमि मे विचर रहे है।अब यहाँ कुछ निवास इस्थान बन गए है |लगभग वर्ष पहले पंडो के यहाँ ही ठहरना पड़ता था। वे ही आपके खाने-पीने,ठहरने का इंतजाम वही करते थे। वे ही आपके पूजा अर्चना कराकर अच्छे से विदा करते थे। मंदिर के बायीं और दूर जाकर एक बड़ा मैदान दिखाई पड़ता है।जिसके मे अनेक जल-धाराएं बहती रहती है।पूरे मैदान मे अनेक प्रकार के फूलों के पौधे लगे हुए है।
जो पूरे मैदान को बहुरंगी कालीन की आकृति प्रदान करती है।जिसके चारो ओर हरे भरे पहाड़ो पर ट्रैक्किंग का आनंद लिया जा सकता है।मंदिर के आस पास के स्थल जैसे -अमृत कुंड(मुख्य मंदिर के पीछे|। जिसका जल रोग नाशक व् अमृत गुणों से भरपूर माना जाता है। ईशानेश्वर महादेव मुख्य मंदिर के बाये किनारे पर पीछे की ओर छोटा महादेव का दर्शनीय मंदिर है।
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भैरोनाथ मंदिर
भैरोनाथ मंदिर मुख्य मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर दूर पहाड़ी के मध्य एक भैरो जी का एक छोटा मंदिर है।ऐसा माना जाता है। जब मंदिर के कपाट बंद रहते है। भैरो जी खुद इसकी रक्षा करते है।
वासुकी ताल
मंदिर के पीछे के पहाड़ पर चढाई करने पर एक विशाल झील दिखाई पड़ती है। यह वासुकि ताल है।इस पहाड़ी पर भ्रम कमल नाम के पुष्प अगस्त -सितम्बर मे खिलते है।
शंकराचार्य समाधी
मंदिर के ठीक पीछे एक मंदिर है।यह शंकराचार्य की समाधी है।ऐसा कहा जाता है चार धाम की यात्रा करने के पश्चात 32 वर्ष की आयु मे ही उन्होंने शरीर त्याग दिया था।
गौरी कुंड
यह बस द्वारा पहुंचने का अंतिम पड़ाव है।यहाँ पर शिव-पार्वती का मंदिर है। जिसमे दोनों ही धातुओ की मुर्तिया है।इसी के पास गरम जल का कुंड है। जो प्रवित्र तथा औषदीय गुणों से भरपूर है।
सोन प्रयाग
गौरी कुंड से इस स्थान पर भी वषुका पड़ाव है।यात्री यहाँ पर भी ठहरते है।यहाँ सोनगंगा ओर मन्दाकिनी का संगम होता है।
त्रियोगी नारायण मंदिर
सोन प्रयाग से लगभग 14 किलोमीटर पैदल जाकर इस मंदिर पर पंहुचा जा सकता है। ऐसी मान्यता है की यहाँ शिव व् पार्वती का विवाह हुआ था।